फर्जी वारंट का फंदा: सिस्टम को चकमा देकर दो निर्दोषों की गिरफ्तारी, अदालत ने किया भांडाफोड़

लखनऊ की कानून व्यवस्था उस वक्त कटघरे में खड़ी हो गई, जब दो निर्दोष भाइयों को अदालत के फर्जी गिरफ्तारी वारंट के आधार पर लखीमपुर की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अदालत पहुंचने पर न सिर्फ इस “गिरफ्तारी” की सच्चाई सामने आई, बल्कि यह भी साफ हो गया कि इस साजिश के पीछे कोई शातिर दिमाग काम कर रहा था, जिसने न केवल सिस्टम के साथ छल किया बल्कि न्याय व्यवस्था की साख पर भी सवाल खड़ा कर दिया।
फर्जीवाड़े की पटकथा: एक वारंट, दो निर्दोष और सिस्टम की चूक
पूरा मामला तब उजागर हुआ जब 29 अप्रैल को लखीमपुर खीरी की गोला पुलिस सिपाही विशाल गौतम और पंकज कुमार के साथ दो सगे भाइयों — प्रेमचंद्र और मुन्नालाल — को लेकर लखनऊ की अदालत में पेश हुई। पुलिस ने दावा किया कि इन दोनों के खिलाफ लखनऊ कोर्ट से गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी हुआ था, जिसे डाक के माध्यम से पुलिस अधीक्षक लखीमपुर को भेजा गया था।
लेकिन अदालत में जब वारंट की सत्यता जांची गई तो हड़कंप मच गया। पता चला कि जिस तारीख यानी 12 अप्रैल को यह वारंट “जारी” बताया गया, उस दिन कोर्ट में छुट्टी थी। यही नहीं, वारंट पर जिस हस्तलिपि और प्रारूप का उपयोग किया गया था, वह न्यायालय के किसी कर्मचारी से मेल नहीं खाता था।
मुकदमों की हकीकत: एक दर्ज ही नहीं, दूसरा ट्रैफिक चालान
शातिरों ने फर्जी वारंट तैयार करने के लिए निगोहां थाने का केस नंबर 345/24 और हजरतगंज का केस नंबर 25/24 का हवाला दिया। जांच में खुलासा हुआ कि निगोहां थाने में वर्ष 2024 में ऐसा कोई केस दर्ज ही नहीं है। वहीं हजरतगंज थाने में केस नंबर 25 महज़ एक ओवरस्पीडिंग का मामला था, जिसमें 25 वाहन चालकों के खिलाफ चालान काटा गया था। यानी दोनों भाइयों का इन मामलों से कोई लेना-देना नहीं था।
डाक से भेजा गया वारंट, पुलिस भी फंसी
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यह फर्जी वारंट डाक के माध्यम से सीधे लखीमपुर के एसपी कार्यालय भेजा गया, जिससे पुलिस भी धोखे में आ गई। कोर्ट के आदेश का हवाला देख पुलिस ने बिना कोई सत्यापन किए कार्रवाई की, जिससे दो निर्दोषों को न सिर्फ गिरफ्तार किया गया, बल्कि उन्हें मानसिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी।
कोर्ट की पहल और पुलिस की तफ्तीश
वजीरगंज थाने के इंस्पेक्टर राजेश त्रिपाठी के अनुसार, अदालत के लिपिक की शिकायत पर अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। संदिग्धों की तलाश की जा रही है और इस मामले में व्यक्तिगत रंजिश की आशंका पर भी जांच चल रही है। डाकघर और कोर्ट के आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं।
सबक और सवाल
इस पूरे प्रकरण ने पुलिस की जांच प्रक्रिया, कोर्ट के आदेशों की सत्यता की जांच और सिस्टम में पारदर्शिता को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अगर अदालत में यह खुलासा न होता, तो दो निर्दोष नागरिक एक फर्जी मुकदमे की भेंट चढ़ सकते थे।
अब जबकि न्याय व्यवस्था ने खुद इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया है, जरूरी है कि जांच एजेंसियां न केवल दोषियों को गिरफ्तार करें, बल्कि भविष्य में ऐसे षड्यंत्रों को रोकने के लिए सख्त प्रणाली विकसित करें।
न्याय व्यवस्था की रक्षा केवल अदालत की जिम्मेदारी नहीं, सिस्टम के हर अंग को सतर्क और जवाबदेह बनना होगा।
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