लखनऊ की रफ्तार पर ब्रेक: चिनहट से चारबाग तक जाम, ई-रिक्शा, बसों और प्रशासन की अनदेखी ने बिगाड़ी सड़कों की चाल
लखनऊ की ट्रैफिक व्यवस्था में हर दिन बढ़ रहा है अव्यवस्था का दबाव: चिनहट से लेकर चारबाग तक सड़कों पर हाहाकार

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जहां विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, वहीं जमीनी सच्चाई शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर बेहद चिंताजनक है। शहर की सड़कों पर हर दिन एक आम आदमी को ट्रैफिक जाम, अराजकता और दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है। बढ़ते वाहन, अव्यवस्थित ई-रिक्शा, बदहाल पब्लिक ट्रांसपोर्ट और ट्रैफिक पुलिस की अनदेखी ने लखनऊ की रफ्तार को जाम में तब्दील कर दिया है।
लखनऊ की ट्रैफिक समस्या में ई-रिक्शा एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। बिना लाइसेंस, बिना पंजीकरण और बिना किसी प्रशिक्षण के हजारों ई-रिक्शा सड़कों पर दौड़ रहे हैं। यह वाहन जगह-जगह बिना अनुमति स्टॉप बनाते हैं और सवारी भरते हैं, जिससे ट्रैफिक फ्लो बुरी तरह प्रभावित होता है। कई बार देखा गया है कि ये ड्राइवर सड़क के बीचों-बीच गाड़ी खड़ी करके सवारियां उतारते या चढ़ाते हैं, जिससे पीछे लंबा जाम लग जाता है। लखनऊ शहर में हर दिन करीब 200 बार ट्रैफिक जाम की स्थिति सिर्फ ई-रिक्शा के कारण उत्पन्न होती है।
चिन्हट में लचर ट्राफिक व्यवस्था
चिनहट, जो लखनऊ के पूर्वी विस्तार का मुख्य द्वार है, अब ट्रैफिक जटिलताओं का हॉटस्पॉट बन चुका है। बिना किसी ट्रैफिक प्लानिंग के यहां हाउसिंग सोसाइटीज, मार्केट्स और स्कूल खुलते चले गए। फैज़ाबाद रोड, मल्हौर और वीसीएल रोड पर सुबह-शाम कई किलोमीटर लंबा जाम लगता है। ई-रिक्शा चालक सड़क के बीचोंबीच सवारी भरते हैं, और पुलिस कर्मी इन पर कोई कार्रवाई नहीं करते।
हजरतगंज: VIP एरिया लेकिन ट्रैफिक बेहाल
हजरतगंज को लखनऊ का दिल कहा जाता है, लेकिन यहां की सड़कों पर ट्रैफिक सिग्नल तक ठीक से काम नहीं करते। पार्किंग की कमी के कारण गाड़ियाँ सड़कों पर खड़ी कर दी जाती हैं। नो पार्किंग ज़ोन में धड़ल्ले से वाहन खड़े रहते हैं, जिससे ट्रैफिक फ्लो बाधित होता है। शाम के समय यहाँ पैदल चलना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
अलीगंज और महानगर: जाम, दुर्घटनाएं और फुटपाथ पर कब्जा
अलीगंज, महानगर और कपूरथला चौराहा जैसे रिहायशी व व्यवसायिक क्षेत्र अब जाम के लिए बदनाम हैं। यहाँ स्कूल, अस्पताल और बाज़ार एक साथ हैं, लेकिन ट्रैफिक का कोई वैज्ञानिक प्रबंधन नहीं। सुबह के समय स्कूल बसों और ई-रिक्शाओं का रेला सड़क को जाम कर देता है।
चारबाग और आलमबाग: परिवहन का केन्द्र, लेकिन अराजकता की सीमा
चारबाग रेलवे स्टेशन और आलमबाग बस टर्मिनल जैसे महत्वपूर्ण परिवहन केंद्रों पर सबसे ज्यादा अव्यवस्था है। यहाँ पर ऑटो, ई-रिक्शा, टैक्सी और निजी वाहन अवैध रूप से सड़कों पर खड़े रहते हैं। ट्रैफिक पुलिस मौजूद होती है, लेकिन निष्क्रिय रहती है या फिर सिर्फ चालान काटकर खानापूर्ति करती है।
गोमतीनगर और इंदिरानगर: नए लखनऊ की पुरानी समस्याएं
शहर का मॉडर्न फेस कहा जाने वाला गोमतीनगर और इंदिरानगर भी ट्रैफिक के मामले में पीछे नहीं है। विशेषकर पत्रकारपुरम, मुनशी पुलिया और विनीत खंड जैसे इलाकों में बिना सिग्नल वाले चौराहे, अवैध ठेले और सड़क पर खड़े वाहन आम ट्रैफिक को बाधित करते हैं। गोमतीनगर विस्तार में तो अंडरपास की हालत इतनी खराब है कि हल्की बारिश में भी वहाँ गाड़ियों की कतारें लग जाती हैं।
अमीनाबाद और कैसरबाग: अतिक्रमण और धूल में दम घुटता ट्रैफिक
पुराने लखनऊ के व्यस्ततम क्षेत्रों में शामिल अमीनाबाद और कैसरबाग में सड़कें व्यापारियों और दुकानदारों द्वारा कब्जा कर ली गई हैं। अतिक्रमण के कारण पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है। यहाँ ट्रैफिक नियमों का पालन लगभग शून्य है। आए दिन यहाँ वाहन आपस में टकराते हैं, लेकिन न कोई कैमरा है, न कोई ट्रैफिक प्लान।
राजाजीपुरम और आशियाना: योजना विहीन विकास, भीड़भाड़ में तब्दील सड़कों का भविष्य
राजाजीपुरम और आशियाना जैसे रिहायशी क्षेत्रों में हर दिन स्कूल बसों, निजी वाहनों और ई-रिक्शा की भीड़ सुबह और दोपहर के समय सड़कों को अवरुद्ध कर देती है। ट्रैफिक सिग्नल न के बराबर हैं और जिन चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस होनी चाहिए, वहाँ अक्सर कोई नहीं होता।
शहर की पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था भी सुधार की सख्त जरूरत में है। UPSRTC और डग्गामार बसें बिना जहाँ मर्जी खड़ी होकर सवारी भर्ती नज़र आती है, राजधानी में आधे से ज़्यादा सरकारी बस मेंटेनेंस माँग रही है शहर में जगह जगह ज़हरीला धुआ छोड़ती बसें अचानक रुकती हैं, स्टॉप का पालन नहीं करतीं। इससे न सिर्फ ट्रैफिक बाधित होता है, बल्कि दुर्घटनाओं का भी खतरा बढ़ जाता है।
लखनऊ में सड़क हादसों के आंकड़े भी डराने वाले हैं। 2023 में पूरे शहर में 1,732 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें से 654 लोगों की मौत हो गई। सबसे ज्यादा हादसे चारबाग, राजाजीपुरम और रायबरेली रोड जैसे इलाकों में हुए। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, 40% हादसे ऐसे इलाकों में हुए जहां ट्रैफिक पुलिस की उपस्थिति नहीं थी या वहां निगरानी बेहद कमजोर थी।
ट्रैफिक समस्या को लेकर प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। एक निजी संस्था द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार 62% लोगों ने कहा कि ट्रैफिक पुलिस सिर्फ VIP ड्यूटी में ही सक्रिय दिखती है। 78% लोगों का मानना है कि ई-रिक्शा और अनधिकृत वाहनों की संख्या सबसे बड़ी समस्या है, जबकि 45% नागरिकों ने खराब सिग्नलिंग सिस्टम और सड़क इंजीनियरिंग को जिम्मेदार ठहराया। चौक, अमीनाबाद और नक्खास जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी या तो नाममात्र की है या वह वहां होकर भी अनदेखी करती है। चालान अभियान अधिकतर सोशल मीडिया के लिए फोटो खिंचवाने तक सीमित रहते हैं। वहीं जब कोई VIP मूवमेंट होता है, तो आम जनता को बिना किसी वैकल्पिक मार्ग की सूचना के घंटों इंतजार करना पड़ता है।
लखनऊ जैसे बड़े और विकसित हो रहे शहर में ट्रैफिक व्यवस्था को अनदेखा करना एक सामाजिक और प्रशासनिक भूल होगी। सरकार और ट्रैफिक विभाग को चाहिए कि वे केवल सड़कें चौड़ी करने तक सीमित न रहें, बल्कि सड़कों पर चलने वाले हर व्यक्ति की सुरक्षा, सुविधा और समय की कद्र करें। जब तक प्रशासन सक्रिय नहीं होता और नियमों को सख्ती से लागू नहीं किया जाता, तब तक लखनऊ की रफ्तार इसी जाम में दम तोड़ती रहेगी।
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