देह की मंडी में इंसानियत की खोज: इंटरनेशनल डे फॉर सेक्स वर्कर्स पर भारत की सेक्स वर्कर्स की हकीकत

जिस समाज में देह बिकती है, वहां सम्मान क्यों नहीं मिलता?
हर साल 2 जून को अंतरराष्ट्रीय यौनकर्मी दिवस (International Sex Workers Day) मनाया जाता है। इसका उद्देश्य यौनकर्मियों के अधिकारों, उनके सम्मान और उनकी सामाजिक पहचान को लेकर जागरूकता फैलाना है। लेकिन जब बात भारत की होती है, तो यौनकर्मियों की जिंदगी सिर्फ एक “सर्विस” तक सीमित होकर रह जाती है जिसे समाज स्वीकारता तो है, पर मान्यता नहीं देता।
भारत में अनुमानित रूप से 8 से 10 लाख सेक्स वर्कर्स हैं, जो बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक मौजूद हैं। हालांकि, इनमें से बहुत कम को कानूनी संरक्षण, सामाजिक सम्मान या चिकित्सा सुविधाएं मिल पाती हैं। इनमें से अधिकांश महिलाएं बाल्यावस्था में तस्करी, गरीबी या धोखे के चलते इस पेशे में धकेली जाती हैं।
भारतीय कानून में देह व्यापार पूरी तरह से अवैध नहीं है, लेकिन ‘इमोरल ट्रैफिकिंग प्रिवेंशन एक्ट (ITPA)’ के तहत इससे जुड़े कई काम अपराध माने जाते हैं—जैसे ब्रोथल चलाना, ग्राहक को बुलाना, या किसी को जबरन इस पेशे में धकेलना। नतीजा यह होता है कि सेक्स वर्कर कानूनी दायरे में होने के बावजूद किसी कानूनी मदद या संरक्षण से वंचित रह जाती हैं।
सेक्स वर्कर्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती सामाजिक बहिष्कार है। यह पेशा अपनाने के बाद महिला को केवल “देह” के रूप में देखा जाता है, इंसान के रूप में नहीं। वे स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, बैंकिंग, और किराए के मकान जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रहती हैं।
भारत में सेक्स वर्कर्स के लिए विवाह करना लगभग असंभव है। समाज उन्हें “चरित्रहीन” मानता है, और ऐसे में कोई उन्हें पत्नी या मां की भूमिका में स्वीकार नहीं करता। उनकी संतानों को स्कूल में भेदभाव झेलना पड़ता है, और कई बार वे भी उसी चक्र में फंस जाती हैं।
HIV/AIDS, यौन संचारित रोग, और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं इन महिलाओं के जीवन में आम हैं। लेकिन मेडिकल सुविधाएं तक इनकी पहुंच सीमित है। एक ओर वे ‘सेक्स सर्विस’ देती हैं, दूसरी ओर अस्पताल में उनके लिए दरवाज़े बंद होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि सेक्स वर्कर्स को भी संविधान के तहत समान अधिकार मिलने चाहिए। कोर्ट ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया था कि सेक्स वर्कर्स को बिना अपराध के गिरफ्तार न किया जाए। लेकिन जमीन पर यह फैसला अभी भी कागज़ों में कैद है।
राह की तलाश: समाधान क्या हैं?
1. कानूनी मान्यता और लाइसेंसिंग: यदि सेक्स वर्क को कानूनी रूप से मान्यता दी जाए, तो सेक्स वर्कर्स को कानूनी सुरक्षा और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ मिल सकता है।
2. स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच: HIV टेस्टिंग, मेंटल हेल्थ केयर, और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त और गोपनीय रूप से उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
3. शिक्षा और पुनर्वास: उनके बच्चों के लिए शिक्षा और खुद सेक्स वर्कर्स के लिए वैकल्पिक रोजगार योजनाएं बनाई जानी चाहिए।
4. मानवाधिकार का सम्मान: यौनकर्मियों को भी वही अधिकार मिलने चाहिए जो किसी भी नागरिक को मिलते हैं—सम्मान, सुरक्षा और न्याय।
सेक्स वर्कर होना कोई अपराध नहीं, बल्कि वह समाज की उस संरचना का हिस्सा हैं जो कई बार मजबूरी, भूख और अन्याय से पैदा होती है। 2 जून को अगर हम सिर्फ एक दिन के लिए भी उनकी ज़िंदगी को ‘सेवा’ की जगह इंसानियत से देखें, तो शायद यह पहला कदम होगा उनके लिए एक बेहतर समाज बनाने की ओर।
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