खोज में खो गया विकास: LDA की हजारो फाइलें गायब

लखनऊ, नवाबों का शहर, जहां विकास की योजनाएं फाइलों में शुरू होती हैं और अब उन्हीं फाइलों के लापता होने से सवालों के घेरे में आ गया है लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA)। करीब 21,000 फाइलों के गायब होने की सनसनीखेज़ घटना ने न सिर्फ प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि आम जनता के भरोसे को भी गहरी चोट पहुंचाई है।
डिजिटल इंडिया में डिजिटल घोटाला
सरकार द्वारा प्राधिकरण की पुरानी फाइलों को डिजिटल स्वरूप में संरक्षित करने के लिए एक निजी कंपनी “राइटर” को ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। 1,45,449 फाइलों की स्कैनिंग के लिए करार हुआ, लेकिन कंपनी के रिकॉर्ड में महज़ 1,25,000 फाइलें दर्ज हैं। इनमें से 1,22,000 फाइलें ही LDA को वापस मिलीं। मतलब साफ है — 20,499 फाइलें न स्कैन हुईं, न वापस आईं, और न ही कहीं उपलब्ध हैं।
कागज़ गायब, इंसाफ भी गायब
इस लापरवाही का सबसे बड़ा खामियाजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है। जानकीपुरम निवासी अतुल कुमार सिंह की कहानी इसका उदाहरण है। उन्होंने 1993 में मकान बनवाया और 2019 में उसे फ्री होल्ड करवाने के लिए आवेदन दिया, लेकिन प्लॉट से जुड़ी फाइल ही गायब थी। चार महीने तक “आज-कल” की नौटंकी के बाद उन्हें बताया गया कि फाइल नहीं मिल रही। आला अफसरों से शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई।
LDA की परछाइयों में पनपता भ्रष्टाचार
यह अकेला मामला नहीं है। प्राधिकरण दिवस और समाधान दिवस पर ऐसे सैकड़ों मामले सामने आते हैं, जहां फाइलों की गुमशुदगी की शिकायत मिलती है। सूत्रों की मानें तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि एक संगठित भ्रष्टाचार का हिस्सा है। गोमतीनगर के विभिन्न खंडों में 22 प्लॉटों की फर्जी रजिस्ट्री इसी का प्रमाण हैं। जिनमें से 6 प्लॉटों की फाइलें भी गायब पाई गईं।
नियोजन की पुरानी परतें और नई उदासीनता
जानकीपुरम, ट्रांसपोर्ट नगर, गोमतीनगर विस्तार जैसी पुरानी योजनाओं की फाइलें गायब हैं — जो आज भी हजारों लोगों के कानूनी अधिकारों, संपत्तियों और ज़मीन की वैधता से जुड़ी हुई हैं। इसका मतलब साफ है: बिना फाइल, ना तो अधिकार साबित किया जा सकता है, ना ही न्याय मिल सकता है।
जवाबदेही की गुमशुदगी
स्टोर इंचार्ज रोहन दुबे, जिन पर फाइलों के मिलान की ज़िम्मेदारी थी, रिटायर हो चुके हैं। तत्कालीन VC सतेंद्र यादव ने सिर्फ एक नोटिस जारी कर मामले को बंद कर दिया। FIR दर्ज कर खानापूरी की गई, लेकिन ना कोई गिरफ्तारी, ना कोई जवाबदेही।
21 हजार फाइलें गायब होना कोई तकनीकी चूक नहीं, बल्कि एक संस्थागत विफलता और शासन की अनदेखी का प्रतिबिंब है। यह घटना सिर्फ LDA तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे तंत्र में फैले उस ‘कागज़ी विकास’ का आईना है, जो जनता के ज़मीनी हक को निगल रहा है।
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