लखनऊ की सड़कों पर ट्रैफिक का ट्रैप : पॉलिटेक्निक से मटियारी तक “धीमे जाम” की मार

लखनऊ, जो तहज़ीब और तरक्की का शहर कहलाता है, आज एक ऐसी समस्या से जूझ रहा है जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी को थामे हुए है — ट्रैफिक जाम। खासकर पॉलिटेक्निक से मटियारी तक का इलाका ऐसा बन गया है जहां ट्रैफिक का जाल इतना उलझ चुका है कि समय पर ऑफिस पहुँचना हो, बच्चों को स्कूल छोड़ना हो या किसी सामाजिक समारोह में शिरकत करनी हो, सब एक सपने जैसा लगता है।
इस भीड़-भाड़ की सबसे बड़ी वजह है ई-रिक्शा और डग्गामार बसें, जो मनमाने ढंग से बीच सड़क रुक कर सवारी भरती हैं। इन्हें न तो यातायात नियमों की चिंता है, न किसी आपातकालीन वाहन की। आए दिन एम्बुलेंस तक इस अव्यवस्था की शिकार होती हैं, जिनकी राह में ये वाहन दीवार बन जाते हैं।
सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि इस पूरे रूट पर कई ट्रैफिक पुलिस बूथ मौजूद हैं, जहां पुलिस कर्मी तो दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ दिखावे की बन कर रह गई है। ट्रैफिक की बुनियादी समस्याओं पर कोई सक्रिय कदम नहीं उठाया जा रहा है।
पुलिस विभाग समय-समय पर अपनी पीठ खुद थपथपाने में जुटा रहता है, लेकिन हकीकत यह है कि इन इलाकों में ट्रैफिक नियंत्रण के नाम पर लापरवाही और असंवेदनशीलता चरम पर है।
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