केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान कहा दुष्ट राष्ट्र बोले: पाक के परमाणु जखीरे पर IAEA की निगरानी जरूरी

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की हालिया टिप्पणी — जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को “गैर-जिम्मेदार और दुष्ट राष्ट्र” कहा — न केवल एक राजनीतिक वक्तव्य है, बल्कि वैश्विक परमाणु सुरक्षा पर एक आवश्यक और समयानुकूल चेतावनी भी है। श्रीनगर के बडामी बाग कैंट में सैनिकों को संबोधित करते हुए उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) से मांग की कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर निगरानी रखी जाए।
यह मांग कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि भूतकाल के अनेक उदाहरणों पर आधारित एक तार्किक चिंता है। पाकिस्तान के राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरपंथी ताकतों का सैन्य तंत्र पर प्रभाव, और उसकी सरकार की दोहरी नीति — विशेषकर आतंकवाद को लेकर — उसे एक परमाणु शक्ति के रूप में बेहद खतरनाक बनाती है।
परमाणु हथियार और आतंक का घातक मिश्रण
आतंकवाद और परमाणु हथियारों का मेल वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा सुरक्षा संकट बन सकता है। जब पाकिस्तान की धरती से बार-बार भारत पर आतंकवादी हमले होते हैं, और इस्लामाबाद इन संगठनों को खुला समर्थन देता है, तो यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि क्या ऐसे देश के पास परमाणु हथियार सुरक्षित हैं?
भारत द्वारा हाल ही में चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर — जो 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के जवाब में किया गया था — इस बात का प्रतीक है कि भारत अब ‘न्यू नॉर्मल’ की ओर बढ़ चुका है। आतंक के हर स्वरूप का अब निर्णायक उत्तर मिलेगा, चाहे उसके पीछे कोई भी शक्ति क्यों न हो।
IAEA की भूमिका और भारत का नैतिक पक्ष
IAEA की निगरानी न केवल पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही के घेरे में लाएगी, बल्कि परमाणु हथियारों के गलत हाथों में जाने की आशंका को भी कम करेगी। भारत स्वयं IAEA के निरीक्षणों में पारदर्शिता दिखा चुका है। इसके विपरीत, पाकिस्तान में अक्सर सैन्य और आतंक के बीच की रेखा धुंधली दिखती है।
राजनाथ सिंह का यह कथन कि “यह पाकिस्तान का कर्म था कि उन्होंने धर्म के आधार पर निर्दोष लोगों को मारा, और भारत ने अपने धर्म के अनुसार जवाब दिया,” यह भारत की नैतिक शक्ति और सुरक्षा के लिए कठोर संकल्प का परिचय है।
आर्थिक कंगाली और रणनीतिक भ्रम
जब पाकिस्तान IMF से ऋण लेने के लिए बार-बार हाथ फैलाता है, वहीं उसके हुक्मरान भारत को बार-बार परमाणु धमकियां देते हैं। क्या ऐसा देश विश्व शांति का संवाहक हो सकता है? IMF जैसी संस्था को भारत भी धन देता है, ताकि ऐसे देशों को सहारा मिल सके। परंतु जब वही देश भारत की पीठ में खंजर घोंपने की कोशिश करता है, तो यह सहायता सवालों के घेरे में आ जाती है।
भारत स्पष्ट कर चुका है: आतंक और वार्ता साथ नहीं चल सकते। अगर बातचीत होगी भी, तो वह केवल आतंकवाद और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) पर होगी। यह रुख न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से उचित है, बल्कि एक संप्रभु राष्ट्र की गरिमा का भी प्रतीक है।
What's Your Reaction?






