बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' के अवसर पर हुआ कार्यक्रम का आयोजन

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में 30 मई को 'हिन्दी पत्रकारिता दिवस' के अवसर पर जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य तौर पर कार्यवाहक विभागाध्यक्ष डॉ. महेन्द्र कुमार पाढी, डॉ. रचना गंगवार, डॉ. अरविंद कुमार सिंह, डॉ. कुंवर सुरेन्द्र बहादुर एवं डॉ. लोक नाथ उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान हिन्दी पत्रकारिता दिवस के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। साथ ही यह भी विचार किया गया कि बदलते दौर में हिन्दी पत्रकारिता की विश्वसनीयता, मूल्यों और सामाजिक उत्तरदायित्व को कैसे बनाए रखा जाए।
कार्यवाहक विभागाध्यक्ष डॉ. महेन्द्र कुमार पाणी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि हिन्दी भाषा की शालीनता, माधुर्य और सरलता इसकी सबसे बड़ी पहचान है, जिसने इसे जनमानस की भाषा बना दिया। 19वीं सदी में जब भारत में नवजागरण की लहर उठी, तब भारतेंदु हरिश्चंद्र के नेतृत्व में हिन्दी भाषा और साहित्य का अभूतपूर्व विकास हुआ। इस युग को भारतेंदु युग कहा गया, जिसमें हिन्दी केवल बोलचाल की भाषा नहीं रही, बल्कि साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक चेतना की सशक्त माध्यम बन गई। इस दौर में उदन्त मार्तंड, समाचार सुधावर्षण एवं कविवचन सुधा जैसी पत्रिकाओं ने भी हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार, साहित्यिक चेतना और सामाजिक जागरूकता को नया आयाम दिया।
डॉ. रचना गंगवार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी पत्रकारिता ने एक लंबी और संघर्षपूर्ण यात्रा के पश्चात आज प्रत्येक क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान स्थापित की है। यह केवल एक सूचना का माध्यम नहीं रही, बल्कि समाज को दिशा देने वाली शक्ति बन चुकी है। उन्होंने वर्तमान समय में हिन्दी पत्रकारिता के समक्ष आने वाली विभिन्न चुनौतियों की ओर भी ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि भाषा और विषय के गहन जानकारों को चाहिए कि वे हिन्दी भाषा की गरिमा और अस्तित्व को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करें।
डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने चर्चा के दौरान कहा कि भाषा किसी भी समाज की आत्मा होती है और इसकी महत्ता से जीवन में गतिशीलता और जीवंतता आती है। यदि हम प्राचीन और आधुनिक पत्रकारिता का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाते हैं कि पहले जहां पत्रकारिता मुख्यतः राष्ट्रवाद, समाज सुधार और जागरूकता के लिए कार्यरत थी, वहीं आज यह डिजिटल और वैश्विक रूप में व्यापक रूप से लोगों की आवाज़ बनने का माध्यम बन चुकी है। साथ ही शैक्षणिक संस्थान पत्रकारिता को केवल एक विषय के रूप में न लेकर, बल्कि एक सशक्त सामाजिक माध्यम के रूप में बढ़ावा दें, जिससे नई पीढ़ी न केवल भाषा में दक्ष हो, बल्कि सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक और उत्तरदायी बने।
डॉ. कुंवर सुरेन्द्र बहादुर ने बताया कि हिन्दी भाषा और पत्रकारिता के क्षेत्र में बाबूराव विष्णुराव पराड़कर का योगदान अविस्मरणीय है। उनके द्वारा हिन्दी को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से 3100 से अधिक मौलिक हिन्दी शब्दों का निर्माण एवं प्रयोग किया गया। साथ ही उन्होंने बताया कि जब कलकत्ता देश की राजधानी था, तब अधिकांश प्रमुख समाचार पत्रों का प्रकाशन वहीं से होता था, क्योंकि वह उस समय का राजनीतिक और बौद्धिक केंद्र था। इसी कारण हिन्दी पत्रकारिता की जड़ें भी वहीं गहरी हुईं।
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