अंतरिक्ष में फिर लहराएगा भारत का परचम, शुभांशु शुक्ला 8 जून को रचेंगे नया इतिहास

8 जून को IAF ग्रुप कैप्टन शुभांशु रचेंगे इतिहास, Axiom-4 मिशन से भरेंगे अंतरिक्ष की उड़ान

May 30, 2025 - 11:42
May 30, 2025 - 11:46
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अंतरिक्ष में फिर लहराएगा भारत का परचम, शुभांशु शुक्ला 8 जून को रचेंगे नया इतिहास

“अगर आपके सपने ऊंचे हैं, तो आसमान भी आपकी मंजिल बन जाता है।” राजधानी लखनऊ के अलीगंज निवासी शुभांशु शुक्ला ने इस कहावत को साकार कर दिखाया है। भारतीय वायुसेना में ग्रुप कैप्टन के पद पर कार्यरत शुभांशु अब अंतरिक्ष में कदम रखने वाले भारत के दूसरे प्रतिनिधि बनने जा रहे हैं। 8 जून 2025 को वह Axiom-4 मिशन के तहत NASA और Axiom Space के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की उड़ान भरेंगे।

यह मिशन न केवल भारत के लिए गर्व का क्षण होगा, बल्कि पूरे विश्व में भारतीय प्रतिभा की धमक दोबारा सुनाई देगी। 1984 में राकेश शर्मा के बाद यह पहली बार होगा जब एक भारतीय, विदेशी मिशन के तहत अंतरिक्ष की यात्रा करेगा। यह 14 दिवसीय मिशन चार अंतरिक्ष यात्रियों के साथ संचालित किया जाएगा, जिसमें शुभांशु की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है।

शिक्षा से लेकर अंतरिक्ष तक का सफर:

शुभांशु की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (CMS) से हुई। इसके बाद उन्होंने NDA के जरिए भारतीय वायुसेना में वर्ष 2006 में फाइटर पायलट के रूप में सेवा शुरू की। वर्ष 2019 में उन्हें भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन के लिए चुना गया। इसके तहत उन्होंने रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में दो वर्षों तक बेसिक एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग प्राप्त की।

भारत लौटने के बाद बेंगलुरु स्थित ISRO के एस्ट्रोनॉट फैसिलिटी सेंटर में ट्रेनिंग पूरी की और हाल ही में SpaceX में विशेष प्रशिक्षण लिया। अब वह उसी स्पेसएक्स मिशन से अंतरिक्ष की यात्रा पर निकलने जा रहे हैं।

परिवार में उत्सव का माहौल, देश को गर्व:

शुभांशु की इस ऐतिहासिक उड़ान से पहले उनके माता-पिता गर्व और उत्साह से लबरेज हैं। उनका कहना है कि बेटे की यह उपलब्धि सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गई है। देश के हर कोने से शुभकामनाएं और सम्मान की बौछार शुभांशु के लिए हो रही है।

भारत एक बार फिर अंतरिक्ष में अपनी छाप छोड़ने जा रहा है, और इस बार इस गौरवमयी जिम्मेदारी को निभा रहे हैं शुभांशु शुक्ला। यह मिशन केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मविश्वास का प्रतीक भी है।

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